Ek Prayas
एक दिन बेचैन दिल ने मुझको थी आवाज़ दी, क्या तू यों चुपचाप बैठा ही रहेगा, क्यों न तू मुझसे भी कुछ तो सीख ले | काम मेरा है रक्त का प्रवाह करना, प्राप्त कर अशुद्ध रक्त को अनेकों अनजान डगर से, शुद्ध कर इस लाल रंग को फिर अनेकों राह चलना, इस तरह इंसान को देता हूँ ,जीने के अतिरिक्त पल | शिक्षा जो तूने कमाई है अनेकों डगर से, तू भी कर सकता है उसको अनेक डगर मैं समर्पित, शिक्षा का जो एक दीपक है जला जो तेरे अंदर, तू कर प्रज्वलित इससे समाज के अनेक दीपक | सुनकर बात ये वियग्र हृदय की मैंने फिर ये तय किया, शिक्षा की इस रोशनी को समाज तक पहुंचाऊंगा, शुरुआत करता हूँ अभी से, प्रयास ये कहलायेगा, शिक्षा का अनमोल सूरज भारत को फिर चमकयेगा शिक्षा का अनमोल सूरज भारत को फिर चमकयेगा || ---Manoj Kumar