सपने बचपन के

मासुम सा बचपन
सपनो से भरा
एक जुनुन है
उनको सच करने का
लेकिन जब हम जागते है
तो वह बस सपने ही थे
आता न नज़र कुछ
दिखता बस दुख ही दुख


फ़ितरत होती है हमारी
ख्वाबो को देखने की
लेकिन जब ख्वाब सच नही होते
तो लगता है
बदल रही है ज़िन्दगी
और, बदल रहे है हम ।


जब हम बड़े होते है
तब याद आता है
बचपन तो बीत गया
ख्वाइशे भी कही छिप गयी
अब नही पता होता क्या बचपन !


क्या ख्वाब देखना बचपन है?
या सपने सच करना ?
तमन्ना है सारा जहा देखने की
पर वह बस तमन्ना ही ना रह जाये
क्योकि सपने देखना तो आसान है
पर सच करना उतना ही मुश्किल ।
०००००००---शालिनी(११)



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