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Ek Prayas

एक दिन बेचैन दिल ने मुझको थी आवाज़ दी, क्या तू यों चुपचाप बैठा ही रहेगा, क्यों न तू मुझसे भी कुछ तो सीख ले | काम मेरा है रक्त का प्रवाह करना, प्राप्त कर अशुद्ध रक्त को अनेकों अनजान डगर से, शुद्ध कर इस लाल रंग को फिर अनेकों राह चलना, इस तरह इंसान को देता हूँ ,जीने के अतिरिक्त पल | शिक्षा जो तूने कमाई है अनेकों डगर से, तू भी कर सकता है उसको अनेक डगर मैं समर्पित, शिक्षा का जो एक दीपक है जला जो तेरे अंदर, तू कर प्रज्वलित इससे समाज के अनेक दीपक | सुनकर बात ये वियग्र हृदय की मैंने फिर ये तय किया, शिक्षा की इस रोशनी को समाज तक पहुंचाऊंगा, शुरुआत करता हूँ अभी से, प्रयास ये कहलायेगा, शिक्षा का अनमोल सूरज भारत को फिर चमकयेगा शिक्षा का अनमोल सूरज भारत को फिर चमकयेगा || ---Manoj Kumar

Koshish

कोशिश प्रेरणा लेकर तुमसे आज मैंने कविता रचने का साहस जुटाया है कला के समुंदर का ज्ञान नहीं है मुझे कोई तमन्ना गोता लगाने की दिल में थी मगर,इसलिए चान्दिनी सितारों से चुराकर रोशिनी बिखेरने की मैंने कोशिश की है || किरण सूरज की रोज जैसे, जिस सरलता से निशा के अँधेरे को मिटाती है कशिश उतनी ही अपने अन्दर भरकर अचल सी इस डगर पर चल पड़ा हूँ मै नैना मेरे प्रज्वलित हो उठे है क्यूंकि ज्योति कला की इनमे भरने की मैंने कोशिश की है || अवनी पर अब तक चल रहा था मै कल्पना के पंख आज लगे है मुझे सीमा अपनी उड़ान की तब तक पता नही होती अलीशा जब तक उड़ान भरी नहीं जाती ख़ुशी की आज मेरे अंत नही है कोई अभिलाषा अपनी उड़ान की पूरी करने की मैंने कोशिश की है || रूचि थी मुझे कुछ करने की रेखा अपनी सीमाओं की लांघने की नमिता होके जैसे धरती रश्मि को गले लगाती है नम्रता उतनी ही अपने अन्दर जगाने की मजुषा सी मैंने कोशिश की है || संगीता हर कोई बन नही सकता लक्ष्मी का रूप हर कोई धर नहीं सकता तनुश्री फूलों सी पाने की अनन्या दुनिया में बनने की तनु सी मैंने कोशिश की है ||   ----Snehit Kumbhare

Prayas ke liye chand alfaaz

उम्मीदों को लगा के पंख मैं  , कुछ सपने साकार करने चला । होसलों की उड़ान केवल मात्र से मैं , शब्दों को हकीकत में बदलने चला ।। मासूम चेहरे , आशा भरी निगाहों को , कभी कुछ पावन मन से मेरे मैं ज्ञान की ज्योति देने चला । निराशावादी विचारो को सकारात्मक सोच देकर अपनी मैं , मानव-मूल्यों का नव-निर्माण करने चला ।। अथाह ,अनन्त है ये पहल भी, शब्द संचित कर भी वर्णित नही कर कर सकता मैं जिसे । ज्ञान ,अनुभव और नैतिकता को खुद में सयोंजित कर ये , शिक्षा की गरिमा को गौरवान्वित करने चला ।। हर्षित, पुलकित, गदगद हूँ मैं यहाँ , की सौभाग्य से दो पग तेरे साथ मैं  भी चला । कुछ साथी मुझे भी मिले इस पथ पर , गुस्ताख थोडा सा हूँ मैं यहाँ जो तुझे वर्णित करने चला ।।                                                                       मनीष कानव

बच्चो के बीच बढ़ती हिँसक प्रव्रत्ति

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आप लोग सोच रहे होंगे की मैंने  ऐसा विषय क्यों चूना । असल में हाल-फिलहाल  ही में हुई आसपास  के कुछ घटनाओ  ने मुझे सोचने  पर मजबूर कर दिया । हाल ही की घटना है की चेन्नई में एक क्लास ९ के बच्चे  ने स्कूल के अन्दर ही चाकू से अपने अध्यापिकाजी  का काम तमाम कर दिया और आगरा में एक लड़के ने प्रेम प्रसंग के चलते अपने सहपाठी को गोलिओ से छलनी कर दिया । मैं भी अपने आसपास जहा भी अपनी नज़र दौड़ाता हूँ ,बच्चो के बीच यही हिन्सात्मक भावना नज़र आती है। ज़रा सी बात मैँ बच्चे लढ़ाई पे उतारु हो जाते है, कहते है-"बस बाहर मिलो तूम, देख लेँगे तुम्हे"। ऐसे में हमें समझ लेना चाहिए कि वोह बच्चा पागल  हैं और उस समय उससे लड़ने जाने के बजाय हमें अपने माता-पिता या फिर गुरुजनों को यह बातें बता देनी चाहिए । मुझे   समझ नहीं आता  कि इनमे सय्यम  नाम कि चीज़ आखिर है भी कि नहीं । अभी तक तो यह घटनाये अमेरिका तथा यूरोपे में ही होती थी, पर लगता है अब भारत भी काफी "तरक्की " कर रहा  है । हमारे समाज में आधुनिकरण के चलते t   .v   . में सीरियल और फिल्मो में दिखाए जाने वाली हिंसा और अशीलता इस हिंसात्मक प्रवृत

हिम्मत है हममे

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[14-03-2021] हिम्मत है हममे लड़ जाने की आशा की किरने  बिखेर सपने सजाने की उम्मीद को जगाने की, नयी ज़िन्दगी पाने की ज़िन्दगी के हर मुकाम तक पहुँचने की हिम्मत है हममे   तिनके की तरह ख्वाइशो को बुनने की पावक की तरह दुर-दुर फ़ैलने की हवा की कोमल सरसराहत के बीच मन से भी तेज भागने की हिम्मत है हममे लहरो से तकराने की सुरज सा तेज बिखेरने की पक्षिओ की एकता भरी कहानिओ से शान्ति की जंग लड़ने की खुशहाल ज़िन्दगी में डूब  गम भुलाने की । हिम्मत है हममे लड़ जाने की समाज में  गरीबो पर अत्याचारों के खिलाफ  अबला नारी के साथ खड़े होने की बच्चो को पूर्ण शिक्षा दिलवाने हेतु बुराई और कुरीतियों के नष्ट करने  हिम्मत है हममे लड़ जाने की । दोस्तों के दर्द को अपना समझ साथ बांटने की  अपनी चतुराई से कुछ कर जाने की कमजोरो को ले साथ आगे बढ़ने की देश को फिर से एक नया घर-समाज बनाने की  हिम्मत हैं हममे वापस इंसानियत को अपनाने की हिम्मत है हममे लड़ जाने की । --शालिनी (क्लास ११) चित्र -- http://seantiffany.blogspot. in   / से ली गयी हैं

सपने बचपन के

मासुम सा बचपन सपनो से भरा एक जुनुन है उनको सच करने का लेकिन जब हम जागते है तो वह बस सपने ही थे आता न नज़र कुछ दिखता बस दुख ही दुख फ़ितरत होती है हमारी ख्वाबो को देखने की लेकिन जब ख्वाब सच नही होते तो लगता है बदल रही है ज़िन्दगी और, बदल रहे है हम । जब हम बड़े होते है तब याद आता है बचपन तो बीत गया ख्वाइशे भी कही छिप गयी अब नही पता होता क्या बचपन ! क्या ख्वाब देखना बचपन है? या सपने सच करना ? तमन्ना है सारा जहा देखने की पर वह बस तमन्ना ही ना रह जाये क्योकि सपने देखना तो आसान है पर सच करना उतना ही मुश्किल । ०००००००---शालिनी(११)

याद आयेन्गे आप !

ज़िन्दगी के हर मोड़ पर याद आएंगे आप वह  हिस्टरी की क्लास में नगमे सुनाते कभी खामोश , कभी गुमशुदा   क्लास में डर भगाते  गणित का  गंभीरता से समझाते  नज़र आयेंगे  आप । प्रयास के जामुन के पेड़ के नीचे आग की तपन में  कहानी सुनाते नज़र आयेंगे आप । फ्र्यदै की शाम को गीत गुनगुनाना हर पिकनिक में मस्ती और प्रयास के हर त्यौहार में रंग बिखेरते नज़र आयेंगे आप । प्रयास के हर वार्षिकोत्सव में डांस सिखाते  बच्चो के संग झूमते  राखी बंधवाते  नज़र आयेंगे आप। 7 :30 के क्लास के बाद भविष्य की राह दिखाते हमारी बदमाश क्लास के अच्छे भैया हमसे दूर चले जाने के बाद भी  हमारे दिलो के किताबो के पन्नो में हमेशा याद आयेंगे आप । -शालिनी (क्लास ११)